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भारत हमेसा से ही ज्ञान और शिक्षा का सागर रहा  हैं।

बुद्धिजीवियों और गुरुओं की इस धरती पर हमेशा ज्ञान का पेड़ फला फूला हैं। 

आज 21 वीं सदी के भारत में जहाँ सरकार हर एक की शिक्षा को सुनिश्चित करने के प्रयास कर रही हैं,

वहीँ कुछ लोग अब भी नारी शिक्षा के खिलाफ हैं।

नारी जो सृजन करती हैं ,

नारी जो पहली गुरु होती हैं ,

रोका जाता है उसे आगे बढ़ने से,

बाँध कर रखने की कोशिशे होती हैं ,

पर

नदी को भी कोई बांध पाया है भला  ।

ऐसी ही एक बहती नदी का नाम था राधा, गरीबी के तालाब में एक खिलते कमल सी थी वो,

जिस तरह के समाज से वो आती थी,

वहां लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती या बाल मजदूरी करवाई जाती,

पर उसने कम उम्र में ही सपने बुन लिए थे,

पढ़ने के !

बेहतर जीवन के !

बस इंतजार था एक मौके का,

जो उसके जीवन को बेहतर दिशा दे सके।

रात अँधेरे वो घरवालों से छुप कर पढ़ा करती थी,

कभी दिया जलाके, कभी स्ट्रीट लाइट के नीचे ,

अब जब सर्दिया आ गयी और स्ट्रीट लाइट के नीचे  पढ़ना मुश्किल हो चला,

तो राधा किसी सुरखित और अनुकूल जगह की तलाश में जुट गयी ,

यूँही एक शाम उसकी नजर एक्विटास बैंक के एटीएम पर गयी,

जहां रोशनी भी भरपूर थी और सर्दी से भी बचा जा सकता था,

एटीएम को उसने अपना क्लासरूम बना लिया और रोज शाम वहां जाके पढ़ने लगी।

एक रोज  बैंक के किसी अधिकारी ने देखा  के कोई बच्चा अंदर बैठा है ,

उसने जाकर सारे घटनाक्रम को समझने की कोसिस की,

उस मासूम की  बातों  से पता चला के

जहां वो रहती है उस बस्ती में लाइट नहीं है !

घरवाले भी कहां चाहते थे के लड़की होकर वो पढ़े ।

फिर मिलने का वादा लेकर वो बैंकर चला गया ।

अगले रोज राधा की बस्ती में कुछ सूट बूट पहने लोग आये ,

राधा के माता-पिता  को कुछ समझाने  की कोशिश करते दिखें ।

उनकी बातों का परिवार पर असर नहीं दिख रहा था ,

थक हार कर वो सब लौट गए।

अभी हफ्ता भर निकला था के कुछ पुलिस वाले राधा की बस्ती में आये और उसके माता पिता को कोर्ट में हाज़िर होने का नोटिस थमा दिया ।

कोर्ट शुरू होते ही जज साहब ने राधा से पूछा “पढ़ना चाहती हो ?”

राधा ने भी हाँ में सर हिलाया ।

उन सपनो को पंख देते हुए कोर्ट ने फैसला सुनाया और

राइट टू एजुकेशन के तहत राधा के बालिग़ होने तक

रहने और पढ़ने की जिम्मेदारी गवर्मेन्ट गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल को दी गयी।

कोर्ट की लास्ट बेंच पर बैठे बैंक अधिकारियों ने मन में एक गहरी सन्तुष्टि के साथ आपस में हाथ मिलाया,

राधा उनही की तरफ देख रही थी !

फिर दौड़ कर उस के पास पहुंची जिससे वो सबसे पहले मिली थी,

आँखे खुशी में जरा नम थी, भरे गले से उसने सबको नमस्ते किया।

उस रोज लोगों ने जाना के बैंक बस लेन-देन के लिए ही नहीं,

समाज को बेहतर बनाने के लिए भी होता हैं।

तभी इसे BEYOND BANKING कहते हैं।

अब तो काफी वक़्त निकल आया है और राधा अपने स्कूल की सबसे होनहार स्टूडेंट भी बन गयी हैं।  पर आज भी उसे अपना पहला क्लासरूम याद हैं।

वही क्लासरूम,

एक्विटास का एटीएम !

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